हे दीप हो तुम अवतार सूर्य का- हिन्दी कविता
हे दीप हो तुम अवतार सूर्य का
तम का पहेरदार हो
है कितना बल और पौरूष तुझमें
युद्ध की ललकार हो
है तुझ में अतुल पराक्रम वो
देते हो चुनौती सीधे तम को हिम्मत रखते करने को क्षण में
दमन घनेरी रजनी को
तब हुआ अचंभा मुझको जब
तुम लड़ रहे थे झंझावातों से
कितनी पीड़ा सह लेते हो
ध्यान नहीं इन बातों पर
जलना, लड़ना पर करना रोशन
स्वार्थ पूर्ण नगर देहातों को
मैं टुक टुक तुझे निहारू
तुम यूँ ही जलते रहना
मैं बैठ हारकर जाऊँ
तुम मुझे प्रेरणा देना
रखते हो लक्ष्य हमेशा
पूरा जलकर ही विश्राम करेंगे
प्रण है जबतक बचे बूंद एक
अंधकार न जग में होने देंगे।